अभिषेक गिरि

सेवा, संघर्ष और संकल्प का पर्याय





संक्षिप्त परिचय

कुछ लोग पदों से पहचाने जाते हैं, कुछ लोग पुरस्कारों से — लेकिन अभिषेक गिरि एक ऐसा नाम है जो सेवा, संघर्ष और संकल्प का पर्याय बन चुका है। 02 अगस्त 1998 की एक साधारण रात, उत्तर प्रदेश के मेरठ में गोस्वामी परिवार में जन्मा एक बालक — जिसने अपने भीतर असाधारण लक्ष्य लिए थे। वह बालक न केवल M.Com और LLB की पढ़ाई करता है, बल्कि समाज और शिक्षा के क्षेत्र में ऐसा काम करता है, जो कई बार सरकारें भी नहीं कर पातीं।



भारतीय पराचिकित्सीय एसोसिएशन में योगदान

वर्ष 2024 से भारतीय पराचिकित्सीय एसोसिएशन में राष्ट्रीय उपाध्यक्ष के पद पर आसीन होकर एलाइड हैल्थ कर्मियों (पैरामेडिकल स्टाफ) के लगातार उत्थान के लिए सेवारत अभिषेक गिरि ने इस आंदोलन को छेड़ दिया है। एलाइड कर्मियों को उनके सम्मान एवं हक के लिए लड़ाई लड़ रही भारतीय पराचिकित्सीय एसोसिएशन में राष्ट्रीय उपाध्यक्ष के पद पर आसीन अभिषेक गिरि ने इस आंदोलन में शुरू से ही अहम भूमिका का निर्वहन किया है।

उनका नेतृत्व चुनावी नहीं, चेतना से प्रेरित है। वे मानते हैं कि पद से नहीं, दृष्टिकोण से क्रांति आती है।

"गोस्वामी वंश केवल पुजारी नहीं – विचारक, शिक्षक, समाज निर्माता और राष्ट्रनायक भी रहे हैं।"



गौरवशाली गोस्वामी परंपरा

  • गोस्वामी कोई जातिगत संज्ञा नहीं, बल्कि साधना, सेवा एवं संयम से प्राप्त एक आध्यात्मिक उपाधि है,
  • जिन्होंने समाज के लिए अज्ञान का नाश, धर्म का प्रचार, और समरसता का विस्तार किया।
  • भारत के अनेक तीर्थस्थलों, मंदिर व्यवस्थाओं, तथा वैदिक गुरुकुलों में गोस्वामियों की भूमिका सर्वोपरि रही है।

अभिषेक गिरि ने अपने कार्यों द्वारा यह प्रतिपादित किया कि गोस्वामी समाज की जड़ें केवल मंदिरों तक सीमित नहीं, बल्कि उसकी शाखाएँ शिक्षा, स्वास्थ्य, संगठन और सेवा के प्रत्येक क्षेत्र में प्रसारित हो सकती हैं — बशर्ते कोई उन्हें संकल्पपूर्वक सींचे।

  • जनसेवा को धर्म मानते हुए, अभिषेक गिरि ने अपने जीवन को समाज के वंचित वर्गों, स्वास्थ्य सेवाओं, और धार्मिक समरसता के लिए समर्पित कर दिया।
  • उन्होंने केवल संगठन नहीं बनाए — आंदोलन खड़े किए।
  • उन्होंने केवल पुरस्कार नहीं पाए — सम्मान अर्जित किया।

प्रमुख उपलब्धियाँ


  • जनरल सेक्रेटरी, Lal Bahadur Shastri Paramedical Skill and Training Council (लखनऊ और मेरठ)
  • नेशनल वाइस प्रेसिडेंट, Indian Paramedical Association
  • संस्थापक, Goswami Social Welfare Society (Regd.)
  • 2024 में सम्मानितदेश रत्न अवार्ड
  • हिमा मालिनी जी के कर-कमलों सेबिजनेस एक्सीलेंस अवार्ड

दर्शन


  • "संघर्ष मत गिनो, संकल्प याद रखो। संस्थाएं नहीं, बदलाव गढ़ो।" – यही अभिषेक गिरि का मंत्र है।
  • ऐसे व्यक्तित्व, जो राष्ट्र के विचारों को जीवन में उतारते हैं, संविधान की आत्मा को जीते हैं – वे ही लोकतंत्र के वास्तविक स्तंभ होते हैं।
  • "मैं कुर्सी का भूखा नहीं, कर्तव्य का प्यासा हूँ। मेरे लिए नेतृत्व सत्ता नहीं, सत्कार्य का उत्तरदायित्व है।" — अभिषेक गिरि

वैश्विक सोच – भारतीय जड़ें


चाहे अंतरराष्ट्रीय सर्वधर्म परिषद के माध्यम से धार्मिक एकता की मिसाल कायम करनी हो या एलाइड हेल्थ वर्कर्स की गुमनाम सेवाओं को पहचान दिलानी हो — अभिषेक गिरि हर क्षेत्र में मौन को आवाज और छाया को मंच देने का काम कर रहे हैं।



भगवान शिव में असीम आस्था


अभिषेक गिरि की भगवान शिव में है असीम आस्था।

"जब जीवन के प्रत्येक संकट में मनुष्य न्यायालयों से पहले आत्मा की आवाज़ सुनता है, तब उसका विश्वास किसी न्यायालय, संस्था या व्यक्ति में नहीं — बल्कि उस परम नियंता में होता है, जिसे भारतीय संस्कृति 'महादेव' कहती है।"

“अभिषेक गिरि” कई वर्षों से लगातार हर दिन मेरठ प्रांत के सबसे प्रसिद्ध भगवान शिव के औघरनाथ मंदिर कैंट में भगवान शिव के श्री चरणों की धूल पाने जाते हैं और इस नियम को कभी छोड़ना नही चाहते। उनका कहना है जब तब ये श्वास इस शरीर के भीतर है तब शिव के इस पावन धरा में अपना मस्तक नवाना नही बंद करूंगा।

अभिषेक गिरि का समस्त जीवन एवं कर्तव्यनिष्ठा उस शिवत्व से अनुप्राणित है, जिसमें विनम्रता में शक्ति,संयम में क्रांति, एवं त्याग में नेतृत्व छिपा है।

"महाकाल के चरणों में समर्पित यह जीवन, किसी भी संकट में विचलित नहीं होता – क्योंकि जहां विधि समाप्त होती है, वहां से शिव की कृपा प्रारंभ होती है।"



रावण से प्रेरणा और संतुलित नेतृत्व


अभिषेक गिरि मानते हैं कि बुद्धि में रावण, भक्ति में शिव – एक संतुलित नेतृत्व का प्रतीक।

यह संसार इस तथ्य से अवगत है कि भारतीय परंपरा में रावण केवल एक खलनायक नहीं, बल्कि वेदों के ज्ञाता, शिवभक्त, महापंडित एवं शक्तिशाली सम्राट के रूप में भी मान्य हैं।

अभिषेक गिरि जी उस चेतना के वाहक हैं, जो रावण की अद्भुत विद्वत्ता, अपार शक्ति, और तर्कशीलता को प्रेरणा के रूप में स्वीकारते हैं – नाशकारी अहंकार को नहीं, बल्कि उस ज्ञान और निष्ठा को जो रावण को 'शिवतत्त्व का परम आराधक' बनाती है।

"शक्ति यदि मर्यादा में हो – तो वह शिव है, और बुद्धि यदि सेवा में हो – तो वह रावण की तपस्या है।"

यह संतुलन ही अभिषेक गिरि के नेतृत्व को शिव की भक्ति और रावण की बुद्धि का समन्वय बनाता है जहाँ नीतियों में स्पष्टता है, निर्णयों में दृढ़ता है और विचारों में निर्भीकता है।

न्यायोचित व्याख्या:- "रावण से प्रेरणा लेना अभिषेक गिरि का अहंकार नहीं, अपितु उसका ज्ञान, संगीत, और ब्रह्मज्ञान का साधक स्वरूप अपनाना है – और यही दृष्टिकोण भारत के सनातन विचार की व्यापकता एवं बौद्धिक उदारता को न्यायसंगत रूप से प्रतिबिंबित करता है।"




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